आमंत्रण सिंधुजा को(शीर्षक)
तुम्हें पसंद है अमावस,
और मुझे तुम्हारा इंतज़ार,
रोशनी नहीं की है मैंने
घर पर,
नगरनिगम वालों ने,
रास्ते उबड़-खाबड़ कर डाले हैं,
पर तुम तो
भावों के रास्ते से आती हो,
प्रज्ज्वलित कर रखा है मैंने,
जगमग दीपों से
मन का आंगन,,,,
भाव पुष्प भी बिछा रखे हैं
तुम्हारे पथ पर ,,,,,,,
तुम्हारे कोमल चरण
पखारना चाहती हूं,
आओ तो सही !!
गीत भी सुनाऊंगी,
भक्ति की चाशनी में
डुबो कर,
माना की बेसुरी हूं मैं,
पर गीत
भावों से भरपूर रखती हूं,
परख लेना जब चाहो,
मेरी आंखें अंधेरे में भी
थाम लेंगी तुम्हारा आंचल,
बच कर नहीं निकल पाओगी
मेरी हरि प्रिया !!!
उधर कहीं दूर,
गीत भी बजने लगा है,
“तेरी परीक्षा मेरी परीक्षा,
दोनों की लाज निभा देना,
भक्ति में कितनी शक्ति है
दुनिया को दिखला जाना”,
अंधेरे में भी सिंधुजा आती है
इस पर मोहर लगा जाना,
इस दीपावली को
मेरे भाग्य जगा जाना !!!