डॉ पुनम शर्मा रचित कविता कुछ नहीं करती

Local

कुछ नहीं करती

माना कि मैं कुछ नहीं करती
तुम्हारे लिए
पर तुम्हारे पीछे तो
खड़ी हूं न, हटती नहीं
तुम्हारे साथ हंसती हूं
तुम्हें,दिखाएं वगैर रोती हूं
तुम्हारी परेशानियों में
माना कि ््््््््््््

जब तुम क़दम बढ़ाते हो
राह के कंटक मैं ही बिनती हूं
गढढो पर पड़े पत्ते
मैं ही हटाती हूं न
ताकि, तुम गढ़े में न गिरो
माना कि ््््््््््््

जब तुम रात रात भर जगते हो, एहसास तले
मैं भी जगती हूं न
मैं भी करके बदलती हूं
तुम्हारी सोच,बेचैनियो तले

माना कि मैं ्््््््््््

तुम्हारे साथ चलती थकती हांफती हूं
तुम्हारे लिए
प्रार्थना करती हूं
पूजा अर्चना तुम्हारे नाम कर
लौट जाती हूं

क्यो कि मैं
कुछ नहीं कर सकती
तुम्हारे लिए
सिर्फ प्रार्थना , प्रार्थना और प्रार्थना

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *