तपिश चाहिए (शीर्षक)
धूप अपना पता नहीं बताती,
सूरज गुम हो गया है,
कोहरे ने कोहराम मचा रखा है,,,
वर्षा रानी कभी कभी
पायल छनकाती है,
हम रजाई, कंबल में लिपटे ,
आलसी हो गये हैं,
आश्रित हैं हम
गृह कर्मचारियों के,,,
दर्शन दुर्लभ हैं
एक दुसरे के,
मोबाइल ही एक मात्र साधन है
वार्तालाप संवाद का,
कमरे से निकलकर ,
चिड़ियों की चहचहाहट पर
हम भी बतिया लेते हैं,,
उन्हें चुग्गा डाल देते हैं
वो नाचते हुए इठलाती हैं,
हम उनकी खुशी से खुश
होते हैं,,
गेट पर कुकुर पूंछ हिला हिला
सलाम ठोकते हैं हमें,,,
वो भी ठंड में मिले अन्न से
कृतार्थ रहते हैं ,
नये साल की यही
दिनचर्या बनी हुई है,
बदलाव हम भी चाहते हैं
मौसम का,
चलो ! सुर्य देव का आह्वान
करते हैं ,,
तपिश चाहिए,
हाथ पैर को
चलायमान करने के लिए,,,