समतामूलक समाज की स्थापना हो बाबा साहब का सपना था – शिव शंकर यादव

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14 अप्रैल अंबेडकर जयंती पर विशेष
@ शिव शंकर यादव

धनबाद। 14 अप्रैल बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की 135 वीं जयंती है। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई और स्वतंत्र भारत में संविधान निर्माता के रूप में जाने जाते हैं। भीमराव अंबेडकर ने समाज में व्याप्त जाति प्रथा के खिलाफ आंदोलन किया और समाज में समतामूलक व्यवस्था लागू करने को लेकर आंदोलन चलाते रहे। बाबा साहब अंबेडकर समानता न्याय को प्राथमिकता देते थे। अंबेडकर ने अपने जीवन के अंतिम समय में हिन्दू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया था। अंबेडकर ने अपने 22 प्रतिज्ञा में स्पष्ट किया है वे बौद्ध धर्म को स्वीकार करते हैं और बौद्ध धर्म के अनुसार ही आचरण करेंगे। झूठ नहीं बोलेंगे, चोरी नहीं करेंगे, शराब नहीं पियेंगे। समाज में समानता और समतामूलक व्यवस्था के लिए कार्य करेंगे। अंबेडकर ने हिंदू धर्म का त्याग ही नहीं किया था बल्कि स्पष्ट कहा था कि वे ब्रह्म, विष्णु महेश को भगवान नहीं मानते। श्री राम और श्री कृष्ण को ईश्वर का अवतार नहीं मानते, बुद्ध को विष्णु का अवतार मानने वालों को झूठा प्रचारक बताया।
अंबेडकर समाज में समानता और न्याय के लिए बुद्ध के विचारों को स्वीकार करते थे। शिक्षा को प्राथमिकता देते थे। अंबेडकर बुद्ध से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने हिंदू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म स्वीकार्य कर लिया। अंबेडकर के समानता और न्याय के साथ समतामूलक व्यवस्था को लेकर आगे चल कर अंबेडकर को मानने वाले बुद्ध के एक अलग पहचान के रूप में स्वीकारा जिसे नवयान कहा जाता है। जिसमें बुद्ध के अष्टांगी मार्ग पर चलने की बात कही जाती है। जो अंबेडकर के 22 प्रतिज्ञा में शामिल है।
समाज में आज भी जाति भेद विद्यमान है। ऊंच नीच का भाव है और छुआछूत जैसी स्थिति है। कानून होने के बाद भी परंपरागत ढांचा में आज भी यह स्थिति बनी हुई है । जिसे बुद्ध के विचार से ही व्यवस्थित किया जा सकता है। अंबेडकर इस जाति प्रथा, सामाजिक भेदभाव को मिटाना चाहते थे जो बौद्ध धर्म का मूल भी है।
अंबेडकर को मानने वालों की तादात ज्यादा है लेकिन वे उस शिक्षा को स्वीकार नहीं कर रहे जिसपर अंबेडकर स्वयं चले। वर्तमान में भी दलितों पिछड़ों वंचितों के बीच शिक्षा का अभाव है, नशा जीवन चर्या का हिस्सा बना हुआ है। जागरूकता की कमी है। और सिर्फ अपने जीवन में अंबेडकर को मानने भर से समतामूलक व्यवस्था लागू नहीं होगी बल्कि शिक्षा को अपनाना होगा, नशा मुक्त समाज बनाना होगा।
अंबेडकर के जयंती पर यह जरूरी हो जाता है कि हम सिर्फ कुरीतियों का विरोध ही ना करें बल्कि उससे लड़ने के लिए शिक्षा को हथियार बनाएं। जब शिक्षा होगी तभी सामाजिक कुरीतियों से लड़ा जा सकता है।।
अंबेडकर के जयंती अवसर पर महामानव को शत शत नमन।

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