अंकिता बेसरा रचित कविता गुलाम बेटियां

साहित्य

गुलाम बेटियां

“भारत को आजाद हुए
भले ही वर्षों बीत गए
आज भी बेटी आजाद नहीं
ना कोई क्यों? समझ सके”

“भारत में रहनेवाले लोग
खुद तो मौज मनाते हैं
पर न जाने कुछ लोग
शैतान क्यों? बन जाते हैं”

“भारत जहां बेटियों को
देवी की पदवी देता है
उसी भारत में कुछ लोग
उसकी भी बोटी ले जाता है”

“बेटा होने पर क्यों? शान
बेटी होने पर क्यों? परेशान
क्यों? बनता कोई हैवान
हम बेटियां भी हैं इंसान”

“बेटियों को क्यों? डांटे हैं
बेटो को क्यों? पुचकारते हैं
बेटियां ही मेरी जाती है
बेटों को क्यों? नहीं समझते हैं”

“बेटियां ही क्यों? हुई गुलाम
बेटियां ही क्यों? हुई बदनाम
क्या? बेटियां ही है हैवान
क्या? हम नहीं है इंसान”

(अंकिता बेसरा जी एस ए प्लस टू विद्यालय की छात्रा हैं। )

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