डॉ पूनम शर्मा रचित कविता शारदीय नवरात्र

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शारदीय नवरात्र (शीर्षक)

शारदीय नवरात्रों के आने का संदेशा देती
गुलाबी बयार चल पड़ी है,
हरे हरे पत्तेदार वृक्ष
झूम झूम कर मां का
आवाहन कर रहे हैं,
लाल लाल लहराती चुनरिया
संदेशा दे रही है
मां के आगमन का,
मैंने भी मंत्र इकठ्ठे कर लिए हैं,
इस बार मां के आते ही
फूलों की पंखुड़ियों की जगह
मंत्रों का अंबार लगा दुंगी
चरणों में,
मां जब तक देखेंगी
पुष्प वर्षा कर स्वागत करूंगी,
श्रृंगार के लिए लहंगा
बना लिया है,
चुनरी गोटे दार है,
इतराती बलखाती मां
धरती पर विचरण करेंगी,
भक्तों को निहारेंगी,
फिर मेरी तरफ भी देखेंगी,
ये लंहगा मैंने बनाया है
भावनाओं को जोड़ जोड़,
आंखों आंखों में उनको
समझा दुंगी,
मां मेरी तरफ से उपहार है,
मेरे आंगन में प्रवेश करने पर,
सुदामा की तरह छुपा लुंगी
वो आठ साड़ियां जो मैंने
मां के लिए संजोकर रखी हैं,
रोज एक मां को अर्पण करूंगी,
मां युगों युगों से तुम्हारा
स्वागत करती आई हूं,
हर साल चार बार
आवाहन करती हूं,
हर बार पलकें
बिछाए रहती हूं,
आते ही अपलक निहारती हूं तुम्हें,
कभी सप्तशती के माध्यम से,
कभी तुम्हारे नामों को
जोर जोर से पुकारती,
कभी मंत्रों से आवाहन करती हूं
कभी प्रज्वलित अग्नि के हवन कुंड में
तुम्हारा दर्शन पाती हूं,
कभी दीपक की लौ में तुम्हें तलाशती हूं,
चारों दिशाओं में तुम और तुम्हारी
शक्ति विद्यमान रहती है
नवरात्र में खुशबू फैलाती,
हर बार वापसी
उपहार भक्तों को थमा,
आशीष मुद्रा में,
लौट जाती हो अपने लोक में
हो जाती हो सर्वभौम,
फिर आने का वादा कर,,,,

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