आरक्षण नहीं सुविधा चाहिए – गजेंद्र सिंह

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आलेख @ गजेंद्र सिंह

आज,आप इसे अभिशाप कहिए, कोढ़ कहिए, दीमक कहिए या फिर भारत का सबसे गलत नीति कहिए, वो है “आरक्षण”। मेरी ये बातें आप लोगों को तभी समझ में आयेंगे, जब आप अपनी निजी स्वार्थ से उपर उठकर सोचना और आत्म – मंथन करना शुरू करेंगे। जब – तक स्वार्थी बने रहेंगे और अपने परिवार तक ही सीमित सोंच और विचार रखेंगे, तब – तक मेरे द्वारा लिखित, ये सारी बातें आपको समझ में नहीं आयेगीं। जिस दिन हम सभी संपूर्ण राष्ट्र को अपना भाई – बंधु मानना शुरू कर देंगे, उस दिन हम सभी को समझ आने लगेगा कि “आरक्षण ” हमारे देश व राष्ट्र के लिए कितना घातक और गर्त में ले जाने वाली नीति है। मैं अपनी बातों को एक छोटी सी कहानी के माध्यम से समझाना चाहूंगा।
एक राजा थे। उनके दरवार में एक दिन दो पक्ष अपनी शिकायत लेकर आए। दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर लांछन लगाया कि इन्होंने मुझे मारा है। दोनों तरफ के लोगों के सिर से खून बह रहे थे। राजा ने दोनों पक्षों की शिकायत सुनने के उपरांत कहा कि अभी आप लोग अपने – अपने घर जाईये, हम पता करवाते हैं कि इसमें गलती किसकी है। इसके बाद राजा ने अपने दरवार के सबसे बुद्धिजीवी पांच दरवारियों को बुलाया और कहा कि आप लोग एक सप्ताह के अंदर जाँच कर बताईये कि इन दोनों पक्षों में दोषी कौन है? एक सप्ताह उपरांत राजा का दरवार लगा और उस दरवार में पांचो दरवारियों को बुला कर पूछा गया कि आप लोग बताईये कि किसका दोष है? तब पांचो दरवारियों ने कहा कि जाँच के उपरांत,मूल रूप से पता चला है कि इस लड़ाई में आपकी “रानी साहिबा” दोषी हैं। ये बातें सुनकर राजा गुस्से में आग बबुला हो गए और कहा कि आप लोग पागल हो गए हैं क्या ? लड़ाई इन दोनों पक्षों में हुई है, और आप दोषी रानी साहिबा को ठहरा रहे हैं, ऐसा क्यों ? फिर राजा शांत होकर बोले कि आपलोग विस्तार से बताईये कि इसमें रानी का दोष कैसे है ? क्योंकि राजा जानते थे कि जिन दरवारियों को उन्होंने जाँच का आदेश दिया था, वे उनके दरवार के बहुत ही बुद्धिजीवी व ईमानदार दरवारी थे। आज तक वे किसी भी वाद यानी केस का निष्पादन करने में कोई गलती नहीं किए थे। तब पांचो दरवारियों ने विस्तार – पूर्वक कहा कि जिस दिन इन दोनों पक्षों में लड़ाई हुई थी, उस दिन रानी जी अपने महल के झरोखे पर बैठकर शहद खा रहीं थी, तो शहद का कुछ बूँद नीचे जमीन पर गिर गया। जब जमीन पर शहद गिरा तो उस शहद के उपर मक्खियां भिन्न – भिन्नाने लगीं। मक्खियों को देख – कर कुछ छिपकीली उन मक्खियों को खाने आ गई । उन छिपकिलियों को देख – कर एक बिल्ली आ गई। बिल्ली को देख – कर गाँव के कुछ कुत्ते आ गए। कुत्ते को देख – कर बिल्ली तो भाग गई, पर कुछ कुत्ते आपस में लड़ने लगे। कुत्ते को लड़ता देख – कर एक पक्ष आया और देखा कि मेरे कुत्ते पर दूसरा कुत्ता हावी है तो उसने दूसरे पक्ष के कुत्ते को एक डंडा लगा दिया। इतने में दूसरा पक्ष भी वहाँ पहुँच गया और उसने भी दूसरे पक्ष के कुत्ते को एक डंडा लगा दिया। फिर क्या था, वे दोनों भी एक दूसरे से लड़ने लगे। दोनों को लड़ते देख – कर कुछ लोग एक पक्ष से, तो कुछ लोग, दूसरे पक्ष से हो गए, और इस प्रकार दोनों पक्ष के लोग घायल हो गए। इसलिए जाँच के दौरान पता चला कि उस दिन “रानी साहिवा” के गलती से ही झगडा हुई थी। अगर वे खाते समय शहद नहीं गिरातीं तो मक्खियां नहीं आतीं। मक्खियां नहीं आतीं तो छिपकिलियाँ नहीं आतीं। छिपकिलियाँ नहीं आतीं तो बिल्ली नहीं आती। बिल्ली नहीं आती तो कुत्ते नहीं आते। कुत्ते नहीं आते तो वे कुत्ते एक दूसरे से लड़ते नहीं, और वे कुत्ते लड़ते नहीं तो दोनों पक्षों के बीच में लड़ाई नहीं होती। इसलिए इसमे सारा दोष “रानी” का है।
इस कहानी के माध्यम से मैं ये समझाना चाहता हूं कि “आरक्षण” सरकार द्वारा चलाई जा रही एक ऐसी गलत नीति है, जिसके कारण हमारा पूरा राष्ट्र प्रभावित हो रहा है और दिन – प्रति – दिन गर्त में जा रहा है। आज जब दुनियाँ globalization की बात कर रहा है, उस समय हमारे देश में आरक्षण की बातें कर जाति – पाती में वर्ग विभेद कर राष्ट्र को गर्त की खाई में धकेला जा रहा है। आज हमें जरूरत क्या है, इसके तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है। सबसे पहले मैं शिक्षा से शुरू करना चाहता हूँ। मैं आप ही पूछता हूँ कि शिक्षक कैसा होना चाहिए? तो, आप सभी कहेंगे कि शिक्षक विद्वान और सर्व – गुण संपन्न होना चाहिए । क्योंकि एक शिक्षक के आश्रय में ही एक “मानव” या यह कहें “सही नागरिक” का निर्माण होता है। उसी में से कोई डॉक्टर, कोई इंजीनियर, कोई वकील, कोई नेता, अभिनेता या अन्य बनते हैं। मैं यहाँ पर जाति या धर्म की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं सभी से आग्रह करता हूँ कि आप अपने दिल पर हाँथ रखकर बोलिए कि आप सभी अपने बच्चे को कैसे शिक्षक से पढ़ाना चाहेंगे ? आप अपने बच्चे को कैसे डॉक्टर से इलाज़ कराना चाहेंगे ? आप अपना घर, कैसे इंजीनियर के संरक्षण में बनवाना चाहेंगे ? तो आप सभी का जबाब एक ही होगा कि जो “expert” हो यानी खुलकर कहें, तो आरक्षित कोटे का ना हो। इसी प्रकार बहुत सारे उदाहरण है। चलिए एक उदाहरण मैं और दे देता हूँ :- मेरे गाँव में जो अभी वर्तमान में मुखिया बनी हुई हैं, वो मुखिया बनने से पहले महुआ से देशी शाराब बनाकर बेचती थी, वो कई बार पकड़ाकर थाना भी जा चुकी थी। लेकिन आरक्षित कोटे के चलते आज वो मुखिया बनी हुई हैं। तो, सोचिये जरा कि एक शराब बेचने बाली अशिक्षित महिला उस पंचायत की विकाश के बारे में क्या सोच या कर सकती हैं। मान के चलिए की उस क्षेत्र का विकाश तो पांच वर्षो के लिए अवरूद्ध ही हो गया। इसी प्रकार आप नजर उठा कर देखेंगे तो अनेकों उदाहरण मिलेंगे, जिससे आपको पता चलेगा कि आज आरक्षण एक कोढ़ के समान है, जो हमारे राष्ट्र और समाज के उन्नति में बाधक बन कर सामने खड़ी है। इतना ही नहीं ये आरक्षण रूपी राक्षस हमारे भाईचारा में भी बाधक बन कर खड़ा है। क्योंकि, इसके चलते ही आज लोग कई वर्गों में बटे हुए हैं या यह कह सकते हैं कि हमारे नेता – गण को हमें जाति – धर्म में बाँटने का बहुत ही सुंदर या कह सकते हैं कि एक घातक हथियार मिल चुका है। आज अगर आरक्षण हट जाय तो जो हम – सभी भिन्न – भिन्न वर्गों में विभक्त हुए हैं, बहुत हद – तक खत्म हो जायेगा, और प्रेम व सौहार्द की भावना फैलने लगेगा। नजर उठा कर देखेंगे तो पता चलेगा कि आज खुलकर अंतर्जातीय विवाह हो रहा है। लेकिन फिर भी कुछ लोगों को आरक्षण के चलते चमार, दुसाध, डोम या अन्य लिखना पड़ता है। कुछ लोगों को आरक्षण के विरोध के चलते वैसा समाज बनाकर बैठना पड़ता है, जहाँ उस तरह की बातें हों। हमें तो लगता है कि जिस दिन आरक्षण खत्म कर दिया जाय, उस दिन लोगों में आपस में प्रेम और सौहार्द बढ़ना शुरू हो जायेगा, व वर्ग – विभेद का खात्मा हो जायेगा।
इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि आज “आरक्षण नहीं सुविधा चाहिए” अगर सरकार को हमें देना ही है, तो “आरक्षण नहीं सुविधा” प्रदान करें। अगर कोई गरीब या लाचार है तो, उसे पूर्ण रूप से मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ या भोजन की व्यवस्था की जाए। उन्हें, वे सारी सुविधाएं दी जाय, जिससे वे लोग सही इंसान बन – कर स्वायलंबी बन सकें, न कि आरक्षण के आधार पर एक डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, या नेता जिससे की हमारे समाज व राष्ट्र के विकाश में बाधा बनें।
अंत में, मैं सरकार से गुहार लगाना चाहता हूँ कि कब – तक अपने समाज के भाइयों को नफरत और घृणा का घूँट पिनें पर मजबूर करते रहियेगा ? हमें लगता है कि लगभग लोग, अब, अपने नाम के साथ, चमार, दुसाध, डोम या अन्य नहीं लिखना या जोड़ना चाहते हैं। लगभग लोग, अब अपने नाम के साथ सिंह या कुछ अच्छे उप – नाम लिखना चाहते हैं । आज बहुत सारे अन्य जाति के लोग तो सिंह या अन्य उप – नाम लिख भी रहे हैं। तो, हटा दीजिये न इस बंधन को, और खुल – कर जिंदगी जीने दीजिये। मैं तो उन लोगों से भी आग्रह करूँगा, जिन्हें अपने नाम के साथ ऐसे उपनाम लिखना पड़ता है। आप सभी छोटी – छोटी चीजों के लिए सरकार के समक्ष धरना – प्रदर्शन कर देते हैं। परंतु, आप – सभी क्यों न इसके लिए भी पूरे भारत – वर्ष में एक – साथ और एक – जुट होकर एक विशाल विरोध प्रदर्शन करते हैं कि मेरे साथ ये जुड़ा हुआ “गंदे उपनाम” को खत्म कर दिया जाय। फिर देखिये, अपना भारत – वर्ष एक बार फिर से सोने की चिड़ियाँ बन जायेगा । पुरातन में, जिस प्रकार दूसरे देश के लोग हमारे देश में विद्या – अर्जन करने हुतु आते थे, वैसे ही फिर से हो जायेगा, और एक बार फिर से हमारा भारत – वर्ष का नाम विश्व में अपना परचम लहरायेगा। आज देखा जाय तो, आरक्षण के चलते ही, हमारे यहाँ के तीब्र – बुद्धि के बच्चे, अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी और जापान भाग रहे हैं। वहाँ जा – कर उस देश के विकाश में सम्मिलित हो रहे हैं और हमारा भारत – वर्ष, आज जाति – पाती, धर्म – संप्रदाय और वर्ग – विभेद की बात कर रहा है। अभी – भी समय है, अपने अग्रगणी नेता – गण, व बुद्धिजीवियों से आग्रह है कि आगे बढ़ें और इस “आरक्षण रूपी कोढ़” को खत्म कर, विकाश, प्रेम व सौहार्द रूपी गंगा को प्रवाहित करनें का पुरजोर प्रयास करें। क्योंकि, परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। यधपि हो सकता है, जब ये नियम बना हो, उस समय इसकी आवश्यकता हो। परंतु आज के परिदृश्य में ये “कोढ़” के समान काम कर रहा है। विशेष – कर आज अपने देश के शिक्षकों पर ध्यान देनें की आवश्यकता है । आज वैसे शिक्षक चुनकर लानें की आवश्यकता है, जो विद्यालय में एक डॉक्टर, इंजीनियर बनाने के साथ – साथ, जाति – पाती से उपर उठकर सोंचना और समझना सिखाएं। एक ऐसी अविरल – धारा रूपी संस्कार डालें जो जाति – पाती और धर्म से उपर उठकर एक सही इंसान का नींव डालें। जो पुरातन में हमारे भारत – वर्ष में विधमान था। लेकिन, वैसे शिक्षक तभी मिलेंगे जब उन्हें पहले यानी पुरातन वाली “प्रतिष्ठा” और “सम्मान” मिलेगी और सबसे ज्यादा “तंख्वाह”। अगर, ध्यान देंगे तो दिखेगा कि आज ज्यादा – तर बच्चे, डी सी, एस पी, डॉक्टर, इंजीनियर या अन्य पदों पर जाना चाहते हैं।क्योंकि, इन पदों पर जाने से उन्हें पैसा और सम्मान दोनों मिल रहा है।आज थर्ड लेवल के विद्यार्थी ही शिक्षक के पद पर आसीन हो रहे हैं। परंतु, जिस दिन हमारे देश के “शिक्षक” को वैसा ही पैसा, रुतवा और सम्मान मिलना शुरू हो जायेगा, उस – दिन, भारत – वर्ष का सबसे प्रखर बच्चा एक “शिक्षक” के पद पर आसीन होना चाहेगा ।
इसीलिए, आप सभी मेरे द्वारा उपर में लिखित कहानी के उपर ध्यान दीजिये, जिसमें मैंने समझाने का प्रयास किया है कि किसी भी समस्या के जड़ में जाईये, फिर वहीं उसका निदान मिलेगा। अतः अपने भारत – वर्ष के विकाश हेतु, सबसे पहला कदम होगा “आरक्षण” रूपी कोढ़ को खत्म करना। इसका खात्मा होते ही हमें प्राप्त होगा, प्रेम, सौहार्द, भाईचारा और फिर होगा देश का अप्रतिम विकाश।
इसीलिए आज हमें “आरक्षण नहीं सुविधा” चाहिए ।
गजेन्द्र सिंह (अधिवक्ता)
अम्बेडकर र्हॉल
सिविल कोर्ट, धनबाद, झारखंड।

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