डॉ योगानंद झा रचित कविता मेरी आशा

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मेरी आशा

भावों के अविरल धारा में ,
तुम मेरी नौका बन जाना,
डिगने लगे पांव मेरा तो,
तू मेरी आशा बन जाना।।
बिना तुम्हारे इस भूतल पर,
जीवन शून्य हमारा है,
बिना तुम्हारे इस धरती पर
क्या? जीवन मूल्य हमारा है।।
बिना तुम्हारे वन उपवन भी,
विरान दिखाई देता है,
सजी रौशनी से नगरी भी,
सुनसान दिखाई देता है।।
याद आती है जब – जब तेरी,
सहसा मन क्रंदन कर जाता है,
कर हिम्मत उठता हूं जब तक,
प्रदत स्नेह वंदन कर जाता है।।
एक तरफ कर्तव्य खींचता,
एक तरफ भावो की धारा,
उभय पक्ष में डूब रहा हूं,
डोल रहा संकल्प हमारा।।
जब भी भटकूं भावाटवी में,
तू मेरी सविता बन जाना,
यदि भ्रमित होऊं बीच भंवर में,
आकर तू पार लगा जाना।।
भावों की अविरल धारा में,
तू मेरी नौका बन जाना।।

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