आभा केथरीन तिर्की द्वारा रचित कविता नारी कोई वस्तु नहीं

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नारी कोई वस्तु नहीं

हक जताया हासिल कर लो
अधिकार जताया मुट्ठी में कर लो
पसंद आ गई वश में कर लो
ना मानी बात तो विवश कर लो
हैवानों नारी कोई वस्तु नहीं

इसे भी अधिकार जीने का है
हिस्से में इसके भी समान अधिकार है
आरोपी अत्याचारी को धिक्कार है
समाज में होना इसका तिरस्कार है
हैवानों नारी कोई वस्तु नहीं

जबरन भला कौन प्यार करता है?
एक तरफा भी कोई प्यार होता है
लानत जो हवस आग में सोता है
पौरुष तू अपना आपा क्यों खोता है?
हैवानों नारी कोई वस्तु नहीं

हर परिवार में मां बहन बेटी होती है
सबकी अपनी अपनी आस्था और इज्जत होती हैं
फिर क्यों समाज में यह प्रतिष्ठा खोती है
क्यों नारी अपनी आजादी को रोती है?
हैवानों नारी कोई वस्तु नहीं

क्यों आए दिन शोषित हो रही?
क्यों बंद कर दरवाजे के पीछे रो रही?
क्यों खुद को असुरक्षित महसूस कर रही?
क्या यह समाज अब इसके लिए ना रही?
हैवानों नारी कोई वस्तु नहीं

बहुतों ने इसे उपभोग वस्तु समझ रखा है
डरा धमकाकर इशारों पर नचा रखा है
बहुतों ने इसे अबला समझ रखा है
क्यों हमने इन्हें पैरों के नीचे दबा रखा है?
हैवानों नारी कोई वस्तु नहीं

बदलाव चाहिए इन्हें भी हक और अधिकार चाहिए
खुली हवा में इसे भी विचरण चाहिए
समाज के लोगों से अच्छा आचरण चाहिए
समाज में सुरक्षित है ऐसा इन्हें प्रण चाहिए
हैवानों नारी कोई वस्तु नहीं।

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