राम की प्रतीक्षा – पूनम शर्मा
बालकनी में बैठे बैठे
डहेलिया को ऊब होने लगी,
वो आ बैठा है छज्जे पर,,,,,
टकटकी लगाए ढूंढता
हर आने-जाने वालों में
अपने राम को,,,,
राम अक्षत तो
आ ही गया है,
मेरे राम भी आते ही होंगे ,,,,,
डहेलिया के मन में
अंकुरित भाव,,,,
इन अबोधों को पता नहीं,
अब राम विरले ही होते हैं
रावण भी अपनी सीमाओं का
उलंघन कर चुका है,
फिर भी ये राम भक्त अयोध्या है
दुल्हन सी सज धज कर
राम की प्रतीक्षारत,,,,
उसी कतार में डहेलिया भी आ खड़ा हुआ है,
अपने राम मंत्र के
जाप के साथ-साथ
एक पैर पर खड़ा,,,,,