आज कहाँ है रे तू !
मेरी हार तेरी हार है ,
मेरा हाथ तूने पकड़ा है ,
मैंने कहां पकड़ा है तेरा दामन ?
मैं तो सिर्फ तेरी तरफ देख रही थी ,
तूने ही अपना सिंहासन छोड़
मुझ जाती हुई का हाथ थाम लिया ,
मैं ठहर गई,
अपना सारा भार
तुझे सौंप दिया,
तूने भी इंकार कहां किया,,,,,
अब परिणाम तेरे हाथों में है
मैं निश्चिन्त हूं ,तू भारग्रस्त,
अब तेरी मर्ज़ी ,मेरी मर्जी बन चुकी है,,,,,
तेरी जीत ही मेरी जिंदगी है ,
मुझे हारने नहीं दिया है
तूने कभी,,
ग्राह के मुख से गज को
खींच निकालने वाला
सिर्फ तू ही रहा है मेरे सखा !!!
आज कहां है रे तू !
मेरे आंसू भी नहीं बचे हैं
तुझे समर्पित करने को,,,,