डॉ योगानंद झा रचित कविता मातृवंदन

साहित्य

*मातृवंदन *

बेपनाह तुझसे प्यार करता हूं,
कर यकीन इंतज़ार करता हूं।
ढूंढती रहती हैं ये आंखें,
याद भी हरबार करता हूं।
गिरता हूं जब कभी ,
लोग मदहोश कहते हैं।
नशेड़ी होगा कोई,
कुछ तो बेहोश कहते हैं।
पर तूं तो सब जानती है,
फिर हठ क्यों ठानती है।
दुनिया तुझे भी पहचानती है,
तू अपना मुझे मानती है।
कसम तुम्हारी खाता हूं,
मिटने न कभी तुझको दुंगा।
आंचल शिर पर रख दे,
गिरने न कभी तुझको दुंगा ।।
लहू गिरे जो तेरे आंचल में,
उसको पुष्प समझ लेना ।
हे मातृभूमि! मैं करता वंदन,
अपना बन अपना लेना ।।

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