डॉ पुनम शर्मा रचित कविता हिम्मत न हारना तुम

साहित्य

हिम्मत न हारना तुम

माना कि आज मैं खंडहर
हो गई हूं,,,,,,
पर खंडहरों में भी बहुत कुछ
दबा होता है,
मैं खंडहर होकर भी
दबाये बैठी हूँ ,
एक धरोहर की तरह
दुआओं की पोटली ,
जिसे हाथ डाल कर
निकाल लेना तुम,
ये दुआएं
तुम्हारे लिए
बेशकीमती हैं ,,,,
वो बहुत काम आऐंगी तुम्हारे ,
आज भी ,,,,,,
मेरे जाने के बाद भी,
कभी परख लेना,
वो धरोहर मैंने संभाली है
तुम्हारे लिए ,,,,
वक्त बेवक्त परखते हैं प्रभु को हम,
वक्त वक्त पर मेरी भी परीक्षा
चलती रही है,,,,,
आज भी तैयार हूं परीक्षा देने को ,
मां हूं तुम्हारी ,
सुखद भविष्य की राह तकती हूं
प्रार्थनाओं के दीप जलाकर
वो दीप जगमगा देंगे राह को ,
राह तक रही हूं ,
उज्जवल भविष्य की तुम्हारी ,
हिम्मत न हारना तुम ,
उज्जवल भविष्य राह तक रहा है
तुम्हारा,
विजय पताका लिए,,,,,

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