डॉ पुनम शर्मा रचित कविता चलो साथ चलें

मनोरंजन

चलो साथ चलें(शीर्षक)

ऐ जिंदगी !
तुम्हारे साथ टहलते हुए
वर्षों बीत गए,
तुम कैसी हो, न तुमने पूछा,
न मैंने सुनाया अपना हाल,
तुम कभी
चाय पर बुलाओ ना मुझे !!!
इत्मीनान से बतियाना चाहती हूं
कुछ तुम्हारी शिकायतें,
तुम्हें ही सुनाना चाहती हूं,
कुछ अपनी वेदना,
उजागर करना चाहती हूं,
डबडबाई आंखों के पोरों से,
मुझे भी कभी चाय पर
बुलाओ ऐ जिंदगी !
कुछ खट्टी, कुछ नमकीन,
कुछ मीठी, कुछ कड़वी बातें
चखते चखते,
उम्र का आखिरी पड़ाव
आ पहुंचा है,
सारी गुत्थियां उलझीं हैं,
उलझनें सुलझाना चाहती हूं,
मित्र नहीं बन पाई तुम्हारी
रेल की पटरियों की तरह,
समानांतर चलती रही,
मोड़ भी आया,
कभी तुम मुड़ी
तो मुड़ी मैं भी,
साथ के लिए,,,
मंजिल जो एक थी,
ऐ जिंदगी ! तुम मेरी रहो,
विधाता का अनमोल
उपहार हो तुम,
मेरी हो तुम,
मेरा नसीब हो,
चलो साथ चलें
आखिरी सांस तक ,,,,,

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