रविकांत कुमार रचित कविता दशहरा का मेला

साहित्य

दशहरा का मेला
।। 1 ।।
संस्कृति का पर्व है
दशहरा का मेला ।
नारी शक्ति का गर्व है ,
दशहरा का मेला ।।
।। 2 ।।
माता के चरणों में सभी ,
श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं ।
मन हीं मन अपनी भावों को ,
उन्हें समर्पित करते हैं ।
भक्तों का रेला है ,
दशहरा का मेला ।
।। 3 ।।
हर तरफ़ दुकान सजी है
रोशनी खुब भा रही है ।
रंग बिरंगे खेल खिलौने ,
फोटोग्राफी खुब हो रही है ।
धकाधक चल रहा है ,
लॉटरी का खेला।
संस्कृति का पर्व है ,
दशहरा का मेला ।।
।। 4 ।।
कहीं गरबा, कहीं डांडिया
कहीं अनोखे कला का प्रदर्शन ।
कहीं बच्चों की मनमोहक प्रस्तुति
कहीं माता का अदभुत दर्शन ।
अलग अलग अंदाज़ में करते ,
आरती शाम की वेला ।
संस्कृति का पर्व है ,
दशहरा का मेला ।।
।। 5 ।।
नए नए सब कपड़े पहने ,
खाते ख़ूब मिठाई ।
डिजनीलैंड ने धूम मचा दी,
माॅं खुब कृपा बरसाई ।
वर्षों से प्रतीक्षारत
नई बहुरिया आई ।
आस्था का पर्व है,
दशहरा का मेला ।
नारी शक्ति का गर्व है,
दशहरा का मेला ।।
।। 6 ।।
रावण दहन का दृश्य देखने ,
विभिन्न जगह से लोग आते ।
भीड़ इतनी की सभी लोग ,
चाहकर भी नही पहुंच पाते ।
असत्य पर सत्य की जीत है ,
दशहरा का मेला ।
संस्कृति का पर्व है ,
दशहरा का मेला ।।


रविकान्त कुमार
वरीय ओवरमैन
AKWMC
कतरास क्षेत्र — 4
बीसीसीएल

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