ईश्वरीय कार्य के लिए अवतरित हुए हुजूर दर्शन दास जी महराज

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आजादी के बाद भारत विकास की ओर बढ़ रहा था और इसी दौर में भारत के एक प्रांत में अलौकिक शक्ति अवतरित होने वाली थी। पंजाब के बटाला में एक जाट ब्राह्मण परिवार में एक ऐसे पुत्र का जन्म जगन्नाथ दास और चानणा देई के घर होना था। जो धार्मिक आचरण के व्यक्ति थे। सामाजिक प्रवृति और धार्मिक विचारों के कारण जगन्नाथ दास बटाला में प्रसिद्ध भी थे। पेशे से हलुवाई का कार्य करते हुए उन्होंने समाज की बहुत सेवा कि और धार्मिक कार्यों में वृति के कारण ही उन्हें अलौकिक शक्ति का आभास हुआ था। भारत के पावन भूमि पर हर काल में ईश्वरीय कार्य के लिए अलग अलग प्रांत और अलग अलग भाषा माध्यम से ईश्वरीय कार्य को संपादन करने के लिए मानव रूप में अलौकिक शक्ति पुरुष महिला का अवतरण हुआ है।


1953 में जगन्नाथ दास और चानणा देई के घर में अलौकिक शक्तियों से संपन्न पुत्र का जन्म हुआ जिसे दर्शन दास का नामकरण किया गया।
दर्शन दास के जन्म से पूर्व ही उनके पिता जगन्नाथ दास को यह स्मरण एक ब्राह्मण द्वारा उस वक्त कराया गया जब जगन्नाथ दास अपने व्यापारिक कार्य से आगरा आए हुए थे। जगन्नाथ दास को ब्राह्मण ने उनके घर एक अलौकिक पुत्र के जन्म लेने की बात बताई थी। और यह जगन्नाथ दास के धार्मिक कार्यों में आस्था के कारण ही अलौकिक शक्तियों द्वारा ईश्वरीय कार्य संपादन के लिए पुत्र के रूप में जन्म लेने वाले शक्ति की पूर्व सूचना दी गई थी।
ईश्वरीय कार्य करने को लेकर ही जगन्नाथ दास और चानणा देई के घर 1953 में पुत्र का जन्म हुआ। जिसके चेहरे पर ईश्वरीय तेज था। जिसे जगन्नाथ दास और चानणा देई ने ईश्वर का आशीर्वाद माना। लेकिन समय गुजरने के साथ जगन्नाथ दास और चानणा देई अलौकिक शक्तियों द्वारा दिए गए संकेत को बिसर गए थे।
दर्शन दास जब पांच वर्ष के थे तब उनके घर कई साधुओं का एक टोला आया और दर्शन दास के चरणों में सर रख कर प्रणाम किया। जिसे देख दर्शन दास के माता पिता अचरज में पड़ गए कि उनके पुत्र दर्शन दास के साथ यह सब क्या हो रहा है। दर्शन दास के माता पिता ने जब साधुओं को दान देना चाहा तो साधु ने कहा कि यह बालक ईश्वरीय कार्य संपन्न करने के लिए अवतरित हुआ है। इनके चरण धूल प्राप्त कर ही जीवन तृप्त हो गया है। हमे कोई दान या भिक्षा नहीं चाहिए। हमारे लिए दर्शन दास जी का चरण धूल और आशीर्वाद ही महाप्रसाद है। साधु ने दर्शन दास जी का अच्छे से पालन करने और कभी झिड़की नहीं देने की बात कहकर चले गए और जल्द ही आलोप हो गए। जगन्नाथ दास जी को पूर्व में ब्राह्मण द्वारा दिए गए संकेत की याद आई जो कई वर्ष पहले उन्हें ईश्वरीय कार्य संपादन करने वाले अलौकिक शक्ति वाले पुत्र के रूप में जन्म लेने की बात याद आ गई। जिसके बाद से जगन्नाथ दास और चानणा देई जी ने दर्शन दास का अच्छे से पालन किया और इसे ईश्वरीय सेवा के रूप में देखने लगे।
कुछ समय उपरांत एक ऐसी घटना घटी जिसे देख लोग अचंभित हो गए। दर्शन दास जी पतंग उड़ाने के दौरान गिर पड़े और उनके सर में गंभीर चोट लग गई। लेकिन दर्शन दास जी ने इस चोट को लेकर अपने माता पिता को कुछ नहीं बताया। बाद में दर्शन दास जी के सर में लगी चोट को देखने के बाद उन्हें नजदीक के एक डॉक्टर के पास ले जाया गया। डॉक्टर ने जब दर्शन दास जी के सर में लगी चोट को देखा तो डॉक्टर ने कहा कि इतनी छोटी उम्र में इतने बड़े घाव लगने के बाद भी दर्द को कैसे बर्दास्त किया और किसी को चोट लगने के बारे में बताया भी नहीं। इस बात पर कोई कुछ बोलता उससे पहले ही दर्शन दास जी ने कहा कि यह चोट मामूली है। जीवन में आगे चल कर ना जाने कितने चोट और इससे भी ज्यादा गंभीर जोत को इस मानव शरीर पर झेलना पड़ेगा। दर्शन दास जी के छोटी उम्र में उनके मुख से इतनी बड़ी और ईश्वरीय शब्द सुनकर सभी स्तब्ध हो गए। वहां उपस्थित लोगों में से किसी के पास इसका जवाब नहीं था। दर्शन दास जी के अलौकिक शक्तियों से जुड़े होने का प्रमाण मिलने लगा था।
क्रमशः

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