अहोई अष्टमी पर डॉ पुनम शर्मा की रचना

साहित्य

अहोई अष्टमी पर विशेष

वक्त के साथ,
मान्यताएं बदलनी चाहिए,,,,
अहोई अष्टमी सिर्फ लड़कों के लिए,
मां के हिस्से की धरोहर नहीं है,
आज के युग में कौन सा क्षेत्र
बचा है जहां ,
लड़कियां परचम नहीं लहरा रहीं,,,
वक्त के साथ मानसिकता भी करवटें बदलती है,
जब मैं बी एससी में थी,
मेरी आदरणीय सासू मां ने मुझसे
अहोई अष्टमी व्रत रखवा दिया था
मैंने कहा अम्मा ये व्रत तो
लड़कों के ‌लिए करते हैं,
उनकी उच्च मानसिकता तले
आज भी मैं नतमस्तक हूं ,
“यह व्रत संतान की खुशहाली के लिए किया जाता है” उन्होंने कहा था,
और मैं संतुष्ट हो गई ,
मान्यताएं बदल गईं,,,
हौसला उत्साह लड़कियों का,
प्रार्थनाएं मांओं की,
अपने अधिकार की
जड़ें जमाने लगी हैं,
समाज ने बेटी प्राप्ति के लिए
कभी आंचल नहीं फैलाया
ईश्वर के आगे ,,,,
किसी आशीर्वाद में “पुत्री भव”,
शामिल नहीं था
“पुत्रवती भव” आशीर्वाद बन,
परचम सा लहराता रहा,
बुजुर्गो का मुंह ताकती रहीं
अबोध भाव लिए बेटियां,,
मान्यताएं बदलीं,,
हौसला अफजाई
स्त्रियों ने की स्त्रियों की ,
भीड़ को धक्का दे अग्रणी बनने
दौड़ने लगी लड़कियां,
आज इतिहास लिख रही हैं बेटियां अपने नाम का,
हम किसी से कम नहीं ,
समाज में वो दम नहीं ,
फिर से पिछली कतार में धकेल दे हमें,,,
आज बेटियां मां बाप का सहारा हैं, दाहिना हाथ हैं,
समाज आजमाता रहेगा
वो बढ़ती रहेंगी,,,,,,
समाज बदल रहा है,,
मान्यताएं प्रखर गति से
चलायमान हैं,,,
आज अहोई अष्टमी व्रत
संतान के सुखद भविष्य की
प्रार्थना है

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