डॉ पुनम शर्मा द्वारा रचित कविता एक कांवड़ ऐसी भी

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एक कांवड़ ऐसी भी (शीर्षक)

सावन का दूसरा सोमवार ,
आसमान से बूंद बूंद
टपकता जल,
जैसे हर बूंद
ओम् नमः शिवाय कह कर
अभिषेक कर रही है
महादेव का,
मैं हाथ जोड़ प्रार्थनारत हूं ,
जैसे अभिषेक मैं ही कर रही हूं,
शिव भी मानो
निहार रहे हैं मुझे,
पैरों से लाचार मैं ,
लालायित मन,
तुम्हारे बारह ज्योतिर्लिगों के
दर्शन लाभ हेतु ,
मानो दो पंख मिल गये हैं,
मैं उड़ चली हूँ
मनसा दर्शन हेतु,
कांवड़ ले अभिषेक करने
माँ गौरा भी मुस्कुरा रही हैं
मेरी मानसिक कांवड़ देख,
जो मैं ले चली हूं
अभिषेक करने,
मना लिया है गौरा को
श्रंगार करके उनका,
प्रार्थना ये है उनसे
सिफारिश कर दें
महादेव से,
स्वीकार करें विनम्र प्रार्थना मेरी
स्वीकारें मेरी कांवड़,
प्रथमेश की भी स्वीकारी थी
परिक्रमा , उन्होंने,
मैं मनसा कांवड़ चढ़ा कर,
कांवड़ियों से पहले
अभिनन्दन अभिषेक कर रही हूं
हे भोलेनाथ !
मेरी कांवड़ भी स्वीकारो !
दुनिया को बता दो
तुम्हें स्वीकार है
मनसा कांवड़ , मनसा अभिषेक
एक कांवड़ ऐसी भी,,
हे पशुपतिनाथ !
हे मेरे नाथ !!
ओम् नमः शिवाय
शिवाय सपरिवाराय नम:
नम: पार्वतीपतये !!
हर हर महादेव !!!

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