राम-मयी सरयू
हे राम !
तुमने मुझे स्पर्श किया,
मैं अमृत बन, खिलखिलाने लगी,
मैं सरयू , मेरी हर बूंद में तुम,
हर तरंग में ,हर कल-कल में,
राम मंत्रों का उल्लेख करती,
राम मय होकर बहती मैं,,,,,
आओ भारतीयों !
मेरा स्पर्श करो,
मुझमें डुबकी लगाओ,,
मैं ही अमृत हूं,,,,
मां बन , अमृत पान कराने को आतुर,,,,,
बाहें फैलाए खड़ी हूं आज भी,
राम मुझमें समाहित है,
मुझमें तुम्हें दर्शन होंगे राम के,
यह अखंड सत्य है,
सरयू-मयी मेरे राम और
मैं उनकी राम-मयी सरयू,,,,