पुनम शर्मा रचित कविता ये जिंदगी

साहित्य

ये जिन्दगी

मैंने जिंदगी को बड़े इत्मीनान से
जिया है,परखा है, निहारा है,
पन्ना दर पन्ना पलटती गयी,
रिश्तों के भेद खोलती,
मुखौटों की परतें उधेड़ती,
चेहरों को बेनकाब करती,
ये जिन्दगी,,,,,
तुम “तुम” नहीं रहे,
मैं भौंचक निहारती,,,,,
जिंदगी गिरगिट है जनाब
माहौल के मुताबिक रंग बदलती है,
कुछ तो समझो सगा “सगा” नहीं
कभी मेरी हार तेरी जीत बनी जिन्दगी
जंग कभी कभी रिश्तों को
बेनकाब कर देती है ,
चलचित्र सी रील में लिपटी
आखरी सांस तक घूमती रहती है,
हर रंग दिखा जाती है
झूठ की दीवार खड़ी करके,
सच को छुपा जाती है जनाब,
ये जिंदगी गिरगिट है जनाब !!!

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