
धनबाद । @ डॉ अजित कुमार चौधरी
जमशेदपुर के गोल्फ ग्राउंड में 4 फरवरी 1972 को झामुमो की नींव रखी गई थी, जहां शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो और एके राय ने अलग झारखंड के लिए आंदोलन की रूपरेखा तैयार की। इस ऐतिहासिक रैली ने झारखंड आंदोलन को नई दिशा दी और जमशेदपुर को आंदोलन का प्रतीक बनाया।शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को हजारीबाग जिले के नामरा गांव में हुआ था। उनके पिता, सोबरन सोरेन, एक शिक्षक थे, जिनकी 1957 में सूदखोरों और शराब माफियाओं के खिलाफ आवाज उठाने के कारण हत्या कर दी गई।1972 में, शिबू सोरेन ने बिनोद बिहारी महतो और एके राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना की। यह संगठन अलग झारखंड राज्य की मांग को निर्णायक रूप देने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।1987 में झामुमो की विशाल जनसभा में सोरेन ने झारखंड के लिए निर्णायक लड़ाई का आह्वान किया। 1989 में उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा देकर अलग राज्य के लिए अल्टीमेटम दिया, जिसने आंदोलन को और तेज किया। उनकी मेहनत 15 नवंबर 2000 को फलीभूत हुई, जब झारखंड एक अलग राज्य बना।शिबू सोरेन ने 1980 में दुमका से पहली बार लोकसभा चुनाव जीता और आठ बार सांसद रहे। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने और केंद्र में कोयला मंत्री के रूप में भी कार्य किया। हालांकि, उनके करियर में विवाद भी रहे, जैसे 1975 के चिरूडीह कांड और 1994 में उनके निजी सचिव की हत्या का मामला।बाबा, जब हेमंत सोरेन ने पूछा, ‘बाबा, आपको दिशोम गुरु क्यों कहते हैं?आपको लोग दिशोम गुरु क्यों कहते हैं?” तो वे मुस्कुराकर कहते: “क्योंकि बेटा, मैंने सिर्फ उनका दुख समझा और उनकी लड़ाई अपनी बना ली.” वो उपाधि न किसी किताब में लिखी गई थी, न संसद ने दी – झारखंड की जनता के दिलों से निकली थी. ‘दिशोम’ मतलब समाज, ‘गुरु’ मतलब जो रास्ता दिखाए. और सच कहूं तो बाबा ने हमें सिर्फ रास्ता नहीं दिखाया, हमें चलना सिखाया. युगों युगों तक शिबू सोरेन याद रखें जाएंगें,दिशोम गुरु श्री शिबू सोरेन जी को विनम्र श्रद्धांजलि🙏🙏🙏🙏🙏